पप्पू की दादागिरी और अदालत के चक्कर

 

पप्पू की दादागिरी और अदालत के चक्कर

पप्पू बचपन से ही बदमाशी में अव्वल था। पूरे मोहल्ले में उसकी धाक थी—बच्चों की पतंगें लूटना, दुकान से उधार लेकर पैसे भूल जाना और पड़ोसियों के बगीचे से आम तोड़ना उसकी रोज़ की आदत थी। लोग उससे परेशान थे, मगर उसके पिताजी बड़े रईस आदमी थे, इसलिए कोई कुछ कह नहीं सकता था।

समय बीता, पप्पू बड़ा हुआ, मगर उसकी हरकतें वैसी ही रहीं। अब उसने अपने चाचा की ज़मीन हड़पने का प्लान बनाया। चाचा सीधे-सादे थे, मगर पप्पू को अच्छे से जानते थे। जब उन्होंने विरोध किया, तो पप्पू ने अपने गुर्गों के साथ मिलकर ऐसा माहौल बना दिया कि चाचा को ही गलत ठहराने की कोशिश की जाने लगी। मामला कोर्ट तक पहुँच गया।

अगले कई साल तक पप्पू और उसके चाचा के बीच अदालत में जंग चलती रही। चाचा को न्याय मिलने में वक्त लगा, मगर अंततः कोर्ट ने पप्पू की धोखाधड़ी पकड़ ली, और उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा।

अब पप्पू की हालत यह थी कि लोग उसे देखकर हँसते और कहते, "अरे भाई, पहले तो मोहल्ले का गुंडा था, अब शरीफ बनने का ढोंग कर रहा है!" मगर पप्पू को अपनी इज़्ज़त बचाने की चिंता सताने लगी। उसने सोचा, अब मुझे अच्छा इंसान बनना पड़ेगा, वरना कोई मेरी इज्जत नहीं करेगा!

बस फिर क्या था! पप्पू ने अचानक सभ्य नागरिक बनने की एक्टिंग शुरू कर दी। मोहल्ले में घूम-घूमकर सबको प्रणाम करने लगा, मंदिर में सेवा करने पहुँचा, और यहाँ तक कि चाचा को भी पानी लाकर देने लगा! मगर मोहल्ले वाले जानते थे कि "जो आदमी कोर्ट-कचहरी में आधी ज़िंदगी खराब कर चुका है, वो अच्छाई का ढोंग कर रहा है!"

एक दिन किसी ने पप्पू से पूछ लिया, "अरे पप्पू भाई, ये अच्छाई का दौर कैसे शुरू हुआ?"
पप्पू ने लंबी सांस ली और बोला, "भाई, अब गुंडागर्दी करने की उम्र नहीं रही... और वैसे भी, कोर्ट में जज साहब ने समझाया कि अच्छे इंसान बन जाओ, नहीं तो सारी ज़मीन जायदाद भी चली जाएगी!"

पूरे मोहल्ले में हंसी गूंज उठी। पप्पू की नई "अच्छाई" की पोल खुल चुकी थी!

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