पप्पू और उसके चाचा की महाभारत
पप्पू और उसके चाचा की महाभारत
गांव का नाम था शांतिनगर, लेकिन वहां शांति नाम की कोई चीज़ नहीं थी। और इसकी सबसे बड़ी वजह थे पप्पू और उसके चाचा। दोनों के झगड़े में पूरा गांव फंस चुका था—कभी खेत की मेड़ पर, कभी कुएं के पास, तो कभी पंचायत के चौक में।
झगड़े की पहली किस्त – ज़मीन के लिए संग्राम
पप्पू के दादा ने अपनी ज़मीन दो हिस्सों में बांटी थी। चाचा को पूरब की तरफ़ का टुकड़ा मिला और पप्पू को पश्चिम का। लेकिन असली समस्या तब शुरू हुई जब पप्पू ने एक गाय बांधने के लिए खूंटा गाड़ा, जो चाचा की ज़मीन में थोड़ा घुस गया। बस, चाचा भड़क गए—
"अरे! ये तो ज़मीन हड़पने की साजिश है!"
दोनों में तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई, और बात थाने तक पहुंच गई।
पुलिस आई, दोनों पक्षों की बात सुनी और जब उन्हें पता चला कि झगड़ा बस एक खूंटे के कारण हुआ है, तो इंस्पेक्टर ने माथा पकड़ लिया।
नेतागिरी का भूत
गांव में चुनाव होने वाले थे। पप्पू और चाचा दोनों प्रधान बनने की दौड़ में थे। अब कौन पीछे हटे?
- चाचा ने वादा किया—"गांव में सीसी रोड बनवाऊंगा!"
- पप्पू ने पलटवार किया—"मैं तो स्कूल के लिए नया मैदान बनवाऊंगा!"
गांववाले दोनों की बातें सुन-सुनकर परेशान हो गए। आखिर में गांव के बुजुर्गों ने फैसला किया कि जो सबसे ज्यादा झगड़ा करेगा, उसे प्रधान नहीं बनने देंगे।
पुलिसवाले भी परेशान
गांव के थाने में एक नया रूल बन गया था—
"अगर कोई पप्पू और उसके चाचा की शिकायत लेकर आए, तो चाय पीकर वापस भेज दो!"
दरअसल, दोनों रोज़ किसी न किसी बात पर केस ठोक देते थे—
- "चाचा ने मेरी भैंस के आगे चारा फेंक दिया, यह साजिश है!"
- "पप्पू ने मेरे कुएं में पत्थर फेंका, पानी दूषित करने की कोशिश!"
यहां तक कि एक दिन पप्पू ने चाचा पर आरोप लगाया कि उन्होंने रात में उनके सपने में आकर धमकी दी!
अंतिम नाटक – पंचायत का फैसला
आखिर में पंचायत बैठी। सरपंच ने कहा, "अब फैसला होगा, या तो समझौता करो या दोनों को गांव से बाहर कर देंगे!"
गांववालों ने भी ताली बजाकर समर्थन दिया। पप्पू और चाचा ने मजबूरी में हाथ मिलाया, लेकिन जाते-जाते चाचा बोले—
"हाथ मिलाया है, पर दिल नहीं!"
और पप्पू ने जवाब दिया—
"अगली बार खूंटा वहीं गाड़ूंगा!"
गांववाले फिर सिर पकड़कर बैठ गए।
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